Sortha Chhand Ki Paribhasha, सोरठा छंद के उदाहरण

आज हम आपको Sortha Chhand Ki Paribhasha, सोरठा छंद की परिभाषा, सोरठा छंद किसे कहते है, सोरठा छंद के प्रकार, सोरठा छंद क्या है सोरठा छंद से जुडी सारी डिटेल इस लेख में आपको देने वाले है.

Sortha Chhand Ki Paribhasha-

सोरठा छंद एक मात्रिक छंद हैजो की दोहा छंद का उलटा होता है इसके विषम चरणों चरण में 11-11 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) चरण में 13-13 मात्राएँ होती हैं जिनके विषम चरणों के अंत में एक गुरु और एक लघु मात्रा का होना आवश्यक होता है। इसे ही सोरठा छंद कहते है.

सोरठा छंद की परिभाषा

सोरठा छंद के नियम-

सोरठा छंद के कुछ नियम होते है जो इस प्रकार से है –

  • सोरठा छंद में प्रथम चरण तथा तृतीय चरण में 11-11 मात्राएँ और द्वितीय चरण तथा चतुर्थ चरण में 13-13 मात्राएँ होती है।
  • सोरठा छंद में प्रथम चरण तथा तृतीय चरण के अंत में 1 लघु स्वर होता है.
  • सोरठा छंद में द्वितीय छंद तथा चतुर्थ चरण के अंत में गुरु होता है.

Sortha Chhand Ka Udaharan, सोरठा छंद के 20 उदाहरण

प्रथम उदाहरण :-

  • s I I I I I I S I, I I S I I I I I I I I I
  • जो सुमिरत सिधि होय, गननायक करिबर बदन।
  • I I I i I I I I S I, I I I S I I I I I I I I
  • करहु अनुग्रह सोय, बुद्धि रासि सुभ गुन सदन॥

ऊपर दिए गये उदाहरण के प्रथम चरण में 11 मात्राएं है और द्वितीय चरण में 13 मात्राएँ जिसके प्रथम चरण के अंत में लघु स्वर है और द्वितीय चरण के अंत में गुरु है.


द्वितीय उदाहरण :-

  • I i S I I S S I, S I I S S I I I S
  • सुनि केवट के बैन, प्रेम लपेटे अटपटे।
  • I I S I I S I I I, I S s I s I I I I I
  • बिहसे करुणा अयन, चितै जानकी लखन तन॥

इस उदाहरण के प्रथम चरण तथा तृतीय चरण में 11-11 मात्राएँ होती है और द्वितीय चरण तथा चतुर्थ चरण में 13-13 मात्राएँ होती है।


उदाहरण 3 :-

  • I I I I I I I I I I I, I I S I I I I I S I I I
  • बंदहु गुरु पद कंज, कृपा सिंधु नर रूप हरि ।
  • I I I I S I I S I, I I S I I I I S I S
  • सन्त सुधा ससि धेनु, प्रगटे खल विष वारुनी ॥

Sortha Chhand Ke Udaharan

उदाहरण- 3

तरह-तरह के रोग, माना इस संसार में।
दाँव पेंच के योग, सबके अपने रोग है ||


उदाहरण- 4

नहीं कोई नादान ज्ञानी अब सब लोग है।
अपना ज्ञान बखान, जगह-जगह हैं बाँटते ।।


उदाहरण- 5

सोरठा छंद की परिभाषा

उदाहरण- 6

जानि गौरि अनुकूल, सिय हिय हरषु न जाइ कहि।
मंजुल मंगल, मूल बाम, अंग फरकन लगे।।


उदाहरण- 7

आए तेरे काम, मित्र अगर संकट सुनें ।
लेकर हरि का नाम, भाई सम उसको चुने ।।


उदाहरण-8

रहिमन हमें न सुहाय, अमिय पियावत मान विनु।
जो विष देय पिलाय, मान सहित मरिबो भलो ।।


उदाहरण- 9

अभी दुखी है देश, राजनीति करना नहीं ।
कोई भी परिवेश, सबक सिखाना शत्रु को ।।


उदाहरण- 10

पनिपटाओ गद्दार, पहले भारत देश में ।
इनका प्रथम सुधार नेता हो या मजहबी ॥


उदाहरण- 11

कमी निकालें खोज, माल बाँटिए मुफ़्त में।
बिक जाता है रोज कचरा जाओ बेचनें ।।


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निकर्ष-

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